आइए, मै आपको ले चलता हूं कमलेश्वर महादेव की पावन यात्रा पर जहाँ आस्था की महक हवा में उसी प्रकार घुलती है; जिस प्रकार पवित्र धूप की सुगंध। यह दिव्य शरणस्थली, भक्त के हृदय में बसी हुई, अनगिनत आत्माओं की अडिग श्रद्धा का प्रमाण है।जो शांति और चमत्कार की एक झलक पाने को आतुर हैं। हिमालय की गोद में, जहाँ प्राचीन कथाओं की सरसराहट वर्तमान की प्रार्थनाओं के साथ मिलती है; यहीं पर निःसंतान दम्पतियों की मौन प्रार्थनाएँ सुनी जाती हैं, और उनके सपने दिव्य करुणा की गोद में पलते हैं।
उत्तराखंड अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक, परंपराओं, मान्यताओं के लिए आदिकाल से ही विश्व विख्यात रहा हैं। यहाँ पर देवाधिदेव भगवान शंकर के अनेका-अनेक प्राचीन मंदिर हैं, जो इस कहावत को चरित्रार्थ करते हैं- ‘उत्तराखंड में जितने कंकर उतने शंकर‘ भगवान शिव जी ने इस पावन धरती पर कई -कई वर्षों तक तपस्या की। रामेश्वरम में जब शिवलिंग की स्थापना होनी थी, तो हनुमान जी कैलाश से ही शिवलिंग लेकर गए थे; जिसका पुराणों में भी वर्णन मिलता है। ऐसा ही एक प्राचीन मंदिर उत्तरकाशी जनपद की रामासिरॉई पुरोला में स्थित है।
उत्तराखंड अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक, परंपराओं, मान्यताओं के लिए आदिकाल से ही विश्व विख्यात रहा हैं। यहाँ पर देवाधिदेव भगवान शंकर के अनेका-अनेक प्राचीन मंदिर हैं, जो इस कहावत को चरित्रार्थ करते हैं- ‘उत्तराखंड में जितने कंकर उतने शंकर‘ भगवान शिव जी ने इस पावन धरती पर कई -कई वर्षों तक तपस्या की। रामेश्वरम में जब शिवलिंग की स्थापना होनी थी, तो हनुमान जी कैलाश से ही शिवलिंग लेकर गए थे; जिसका पुराणों में भी वर्णन मिलता है। ऐसा ही एक प्राचीन मंदिर उत्तरकाशी जनपद की रामासिरॉई पुरोला में स्थित है।
कमलेश्वर महादेव
पुरोला बाजार आज देश के विभिन्न शहरों से जुड़ा है। एक ओर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून जो पुरोला से मात्र 135 किलोमीटर दूर है। देहरादून से यहाँ के लिए वाहनों की आवाजाही बनी रहती है। एक दिन में अब लौट-पौट करना आसान हो चुका है। देहरादून रेलवे सेवा तथा जौलीग्रांट एयरपोर्ट से जुड़ा है। देहरादून से पहाड़ों की रानी मसूरी नैनबाग, डामटा आदि कस्बों में खाने पीने व दूरभाष की उचित व्यवस्था है। डामटा से 17 किलोमीटर आगे बढ़ने पर बर्नीगाड़ नामक स्थान आता है। यहाँ से यमुना पार कर दो किलोमीटर दूर ऐतिहासिक स्थल लाखामण्डल है, जहाँ पांडवों को जलाने के लिए लाक्षागृह का निर्माण करवाया गया था।
यहाँ से 11 किलोमीटर चलने पर नौगांव पहुँचते हैं। नौगांव से एक मार्ग सहस्रबाहु की नगरी बड़कोट से होते हुई यमुनोत्री को जाते हैं। दूसरा मार्ग नौगांव से यमुना पुल पार कर एक मार्ग गडोली राजगढ़ी होते हुए सरनौल तक पहुँचता है। सरनौल नौगांव विकासखंड का अंतिम गाँव है, जो अपनी पारंपरिक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। सरनौल में रेणूका माँ का प्रसिद्ध मंदिर है। यमुना पुल से सीधा मार्ग 19 किलोमीटर पुरोला पहुँचता है।
पुरोला दिनों-दिन शहर का रूप धारण करने की ओर अग्रसर है। पुरोला नगर पंचायत हरे-भरे खेतों के बीच में अविरल दौड़ती हुई कमल गंगा के तट पर सुशोभित होता बाजार है। यहाँ पर पर्यटक आवास गृह, कमल गंगा होटल, नौटियाल लॉज, बिजल्वाण रिजोर्ट, थपलियाल लॉज, अग्रवाल लॉज, सरूतल रिजोर्ट, होटल क्लासिक हिल व्यू, हर की दून पैलेस सहित खाने पीने व ठहरने की उचित व्यवस्था है। कमलेश्वर महादेव का मनोहारी दृश्य कमलेश्वर महादेव मंदिर में भक्तजन शिवरात्रि पर्व पर दूर-दूर से आते हैं।
शिवरात्रि पर्व पर बड़कोट, डामटा, नैनबाग, मोरी, नेटवाड़, त्यूनी, आराकोट, सहारनपुर, देहरादून, दिल्ली से भक्तजन आते हैं। पुरोला से शिमला हर की दून रोड पर चलते हुए। रास्ते में सुनाली, धिवरा, डेरिका, रामा बैंड से होते हुए। सुरम्य रमणीक थालीनुमा रामासिरांई, कमलसिरांई के मध्य धुनगिर नवोदय विद्यालय उसके समीप पोरा गाँव जहाँ देवदार को छांव में कपिल मुनि, खंडासूरी महाराज, डुण्डा कश्मीरा का भव्य मंदिर देखने योग्य है।
क्षेत्र का सबसे बड़ा गाँव गुन्दियाटगाँव जहाँ ‘कपालीका’ नामक स्थान पर कपिल मुनि की तपस्थली मानी जाती है। यह गाँव पुरोला से सड़क मार्ग से जुड़ा है गुन्दियाटगाँव से भी पैदल मार्ग कमलेश्वर महादेव तक जाता है। गुन्दियाट गाँव में कपिल मुनि का भव्य और दिव्य मन्दिर है। कहा जाता है कि रामा गाँव में जो शिव मंदिर है जिसे रामेश्वरम कहते हैं कि स्थापना रामचंद्र जी के द्वारा की गयी। दूर-दूर तक फैले सुंदर गाँव उनके भवन, वास्तुकला, स्थापत्य कला आज भी देखने योग्य है। यह घाटी तीर्थ यात्रियों, पर्यटकों का मन मोह लेती है।
इतनी मनोहरी घाटी को देखकर लोग मंत्र मुग्ध हो जाते हैं और अपनी यात्रा के रंग में भूलकर सदाबहार हरे-भरे चीड़, बांझ, बुरांश के जंगलों के बीच से गुजरते हुए जरमोला पहुँचते हैं। यहाँ पर विश्राम हेतु छोटा होटल है, जिसमें चाय व फास्ट फूड की व्यवस्था है। जरमोला से जंगलात रोड से आगे बढ़ना होता है यदि विश्राम करना चाहें तो थोड़ा 100 मी ऊपर चढ़कर कर विश्राम कर सकते हैं। इसी जंगलात रोड से 2 किलोमीटर तक छोटी गाड़ी से यात्रा तय कर सकते हैं।
यहाँ से हल्की सी चढ़ाई पार कर छोटा सा नाला आता है। नाले से आगे रास्ते के ऊपर चरण पादुका है, जिसमें रामचन्द्र जी के पैर का निशान एक पत्थरशिला पर बना हुआ है, जो स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। कुछ कदम आगे चलने पर एक चट्टान है बताते हैं कि यहाँ पर एक अजगर रहता था, जो आते जाते लोगों को काटता था। इसके डर से लोग परेशान होने लगे। भगवान रघुनाथ (ओडारु) ने बज्रपात कर इसे पत्थर शीला बना दिया, जो आज भी सफेद रंग की चट्टान के बाहर देखा जा सकता है।
यहीं से धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए बांझ-बुरांश के फूलों को निहारते हुए। आगे बढ़ते हैं बुरांश के फूलों के रस से शरबत बनाया जाता है, जो बहुत स्वादिष्ट एवं हृदय रोगियों के लिए भी लाभदायक होता है। बुरांश का वृक्ष उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है। आगे चलने पर मंदिर प्रांगण प्रारंभ हो जाता है, जो बहुत ही मनोहारी लगता है। यहाँ पहुँचकर यात्रीअपने रास्ते की थकान को भूल जाते हैं और प्रकृति की गोद में प्रेम और भक्ति के मिलन में झूम उठते हैं।
पौराणिक मान्यता
कमलेश्वर महादेव एक पौराणिक मन्दिर है। कमलेश्वर महादेव जी के साथ रामचंद्र जी, हनुमान जी व पांडवों की कथाएं एवं मान्यताएं जुड़ी हैं । पण्डित श्री शांति प्रसाद बिजल्वाण जी; जो कमलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी हैं, उन्होंने अपने दादा जी श्री उदय राम जी से जो सुना उसका उल्लेख यहां पर कर रहा हूं।
“कमलेश्वर महादेव त्रेता युग के भगवान रामचंद्र जी व हनुमान जी के द्वारा स्थापित है। जब भगवान राम वनवास के लिए अयोध्या से भ्रमण करने निकले, तो यमुना नदी के किनारे से कमल गंगा के त्रिवेणी संगम -कमल गंगा ,गीत गंगा (कालसी धार नौरी )से एवं छाडगा ( जो छाड़ा से आती है। खाबली बाजार जो कि पुराना नाम है वहां पर मिलती है। अर्थात खाबली बाजार मे त्रिवेणी संगम है। जो प्रयाग के समान गंगा यमुना और सरस्वती जैसे है।
यहां पर शमशान घाट भी बनाया गया है। वर्तमान मे उस स्थान का नाम पुरोला रखा है। पुरोला से 9 किलोमीटर ऊपर सुखदेव मुनि तपस्या करते थे अर्थात् नीलगिरी पर्वत भी यहां है ।जहां नल नील ने तपस्या की थी। वर्तमान में यहां का नाम नलना रखा गया है। यहीं से निलगिरी गंगा आती है। यहां पर सुखदेव ने भगवान सूर्य नारायण की तपस्या की । सुखदेव भगवान सूर्य नारायण कै अर्घ्य चढाते थे ।
पूर्व की और शुक सारी गंगा निकलती है जो कमल गंगा में प्रवेश करती है। कमल गंगा का मूल उद्गम कमलेश्वर है इसलिए इस गंगा को कमल गंगा कहते हैं।”भगवान राम नीलगिरी पर्वत से भ्रमण करते हुए देवधार नामक स्थान पर पहुंचे ।यहां पर भगवान सूर्य नारायण ने तपस्या की थी । यहां पर सूर्य शीला विद्यमान है ।
जब भगवान राम ,सीता और लक्ष्मण यहां पहुंचे । तो यहां पर विश्राम किया तथा प्रातः समय अपना नित्य कर्म करते हुए ,सूर्य नारायण की पूजाअर्चना की। तब राम जी के मन में यह विचार आया कि यहां पर कितनी सुंदर पवित्र तलहटी है। इस स्थान पर भगवान शंकर का मंदिर होना चाहिए ।सीता जी सहित सभी ने शिव मंदिर का विचार किया । हनुमान जी को कैलाश से शिवलिंग लाने के लिए भेजा गया । यहां पर मुहूर्त पर प्रतिष्ठा होनी है।आप जाकर कैलाश से शिवलिंग लेकर आओ ।
हनुमान जी जंगल से गुजरते हुए इस सुंदर स्थान पर पहुंचे जहां सुंदर-सुंदर परियां झील मे स्नान कर रही थी । वहां पर अनेकों प्रकार के कमल पुष्प थे। उस स्थान को देखकर हनुमान जी ने स्नान करके कैलाश के लिए प्रस्थान किया। कैलाश में जाकर भगवान शंकर की आराधना की और कहा कि महाराज भगवान राम ने शिवलिंग मंगाया है।
भगवान शंकर बोले हनुमान जी आप शिवलिंग ले लो पर इसको कहीं बिठाना नहीं है। हनुमान जी शिवलिंग उठाकर श्री राम जपते हुए वापस वहीं कमल झील के पास पहुंचे तो विचार किया कि मैं स्नान भी करूं और कमल पुष्प भी पूजा हेतु यहां से लेकर जाऊं। जब स्नान का विचार किया तो हनुमान जी ने शिवलिंग सहित सरोवर में डुबकी मारी, तब तक मुहूर्त का समय निकल गया।
भगवान राम ने देवधार में बालू का शिवलिंग बनायाऔर उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर दी। हनुमान जी के कंधे से शिवलिंग फिसल गया और तालाब में स्थापित हो गया। हनुमान जी ने लिंग को उठाने की कोशिश की परंतु लिंग नहीं उठा । भगवान राम ने विचार किया की वानर है कहीं खाने में लग गये होंगे इसलिए समय ज्यादा लग गया होगा। तो देवधार में बालू का शिवलिंग प्रतिष्ठित कर वहां का नाम राम के नाम से रामेश्वर महादेव रखा ।उस स्थान पर बसने वाले गांव का नाम भी रामा रखा गया।
क्षेत्र की तलहटी का सौंदर्य देखकर उसका नाम रामासिरांई रखा ।तब हनुमान जी ने कमल पुष्प तोड़कर लिंग स्थापित करके वहां का नाम महादेव रखा। वहां से चलकर जब देवधार पहुंचे तो अपना वृत्तांत राम जी को सुनाया । महाराज जो लिंग मैंने लाया वह बीच में एक कमल पुष्प की झील है ।उसमें मैंने स्नान किया और वही लिंग स्थापित हो गया। भगवान रामचंद्र को ऐसा वृतांत सुनाते हुए सीता जी का मन हर्षित हो गयाऔर कहा चलो उसी स्थान पर जहां शिवलिंग स्थापित है।
वहां से प्रस्थान करते हुए जंगलों से गुजरते हुए जब वह उस सुंदर रमणीक स्थान पर आए तो उनका मन भी रम गया और राम सीता लक्ष्मण हनुमान ने स्नान किया ।तब भगवान शिवलिंग का पूजन प्रतिष्ठा का विचार किया और पूजन प्रारंभ किया।
कमलेश्वर महादेव मे तीन युगों की कहानी जुड़ी है त्रेता में राम, द्वापर मे कृष्ण, वर्तमान में कलियुग चल रहा है। इतना महत्वपूर्ण स्थान है बाबा भोलेनाथ का मन्दिर जहां हर मनोकामना पूर्ण होती है।
कमलेश्वर महादेव नाम की सार्थकता
कमलेश्वर महादेव मंदिर के बारे में विद्वानों के अनेक मत हैं। कहा जाता है कि जब रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना होनी थी तब हनुमान जी को कैलाश से शिवलिंग लेने के लिए भेजा गया और हनुमान जी को बताया गया था, कि शिवलिंग को कहीं भी बिठाना नहीं है।
हनुमान जी शिवलिंग लेने कैलाश में चले गए और जब शिवलिंग लेकर आए। तब उन्हें रास्ते में एक सुंदर ताल एवं कमल सदृश्य लाल फूल दिखाई दिये। ताल और फूल को देखकर हनुमान जी फूल तोड़ने तालाब पर उतरे और शिवलिंग को भूलकर यहाँ किनारे पर रख दिया, जब फूल तोड़कर आए तो शिवलिंग को उठाने लगे लेकिन शिवलिंग नहीं उठा। हनुमान जी को तुरन्त याद आया कि शिवलिंग को कहीं भी बिठाने के लिए मना किया हुआ था। इसलिए शिवलिंग नहीं उठा।
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम ।
न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥
‘आदि शंकराचार्य द्वारा रचित निर्वाण षट्कम‘
मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं, मैं चैतन्य के रूप में सब जगह व्याप्त हूं, सभी इन्द्रियों में हूं,
न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं, मैं तो शुद्ध चेतना हूं,
अनादि, अनंत शिव हूं।
Source : https://isha.sadhguru.org/hi/blog/article/nirvana-shatakam-lyrics-hindi
यहाँ चारों ओर से घिरा बांझ बुरांश का घना जंगल है। बुरांश के फूलों को कमल का फूल समझकर हनुमान जी यहाँ उतरे गये थे। कमल का फूल यहाँ होना संभव नहीं लगता है, क्योंकि कमल गर्म स्थानों पर होता है लेकिन हनुमान जी को कमल के फूलों की भ्रांति हुई। उसी के आधार पर इस पावन पवित्र तीर्थ का नाम ‘कमलेश्वर महादेव’ मंदिर पड़ा। दूसरा कारण यहाँ की पर्वत श्रेणियां; जो चारों ओर से कमलाकृति का निर्माण करती हैं। इस कारण भी इस स्थान का नाम कमलेश्वर महादेव सार्थक प्रतीत होता है।
इन दोनों कारणों से कमलेश्वर, कमल गंगा, कमलसिरांई, कुमोला आदि नामों की भी सार्थकता प्रकट होती है। कमलेश्वर के पश्चिम में रामा गाँव है, कहते हैं कि रामचंद्र जी ने इस गाँव में रात्रि विश्राम किया था तथा यहाँ पर शिवलिंग की स्थापना कर पूजा अर्चना की थी। तभी से इस गाँव का नाम ‘रामा’ पड़ा तथा यहाँ के समतल प्राकृतिक छटा के बीच बसी घाटी को ‘रामासिरॉई’ कहते हैं। लोक मान्यता है कि कमलेश्वर में हनुमान जी द्वारा बिठाये गए शिव लिंग की स्थापना भी रामचंद्र जी द्वारा हुई हैं। संयोग देखें तो मंदिर का जीर्णोद्धार भी कमलेश्वर नामक डीएफओ द्वारा किया गया।
मंदिर निर्माण एवं वास्तुकला
मंदिर निर्माण एवं वास्तुकला मंदिर निर्माण के बारे में भी लोगों के विभिन्न मत है। कुछ लोग मंदिर को शंकराचार्य द्वारा निर्मित मानते हैं। शंकराचार्य उत्तराखंड में कत्यूरी शासकों के समय आए थे। उस समय कत्यूरी कला के मुख्य केंद्रों में लाखामंडल भी एक था। कुछ लोग इस बात का खंडन करते हैं कि मंदिर का निर्माण शंकराचार्य द्वारा नहीं किया गया बल्कि शंकराचार्य मिस्त्री नाम के व्यक्ति द्वारा सन् 1940 के आसपास मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था। यह दोनों तथ्य सत्य के करीब लगते हैं, जिसमें हो सकता है; आठवीं-दसवीं सदी के मध्य यह मंदिर शंकराचार्य द्वारा बनाया गया हो तथा बाद में मंदिर का पुनर्निर्माण शंकराचार्य मिस्त्री द्वारा करवाया गया हो।
मंदिर परिसर में रह रहे संत कमलनाथ एवं मंदिर समिति के अध्यक्ष रहे स्व. रामकृष्ण नौटियाल, प्रद्युमन बिजल्वाण एवं सुरेशानन्द बिजल्वाण बताते थे कि गोरखा आक्रमण के समय मंदिर खंडित था तथा गोरखा आक्रमणकारी रात्रि विश्राम मंदिर में क्या करते थे। सन् 1930 से पूर्व लोग पशु चुंगाने जंगल में आते थे। वही ग्वाले शिवलिंग की पूजा अर्चना करते थे। तभी सन् 1930 के आसपास गाँव वालों के सहयोग से कमलेश्वर नामक डीएफओ ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
उसी समय लोगों ने पुनः लिंग की स्थापना करनी चाही लेकिन कुछ दूरी तक खोदने पर ताम्र लिंग प्रारंभ हो गया तथा वहाँ से काटने वाली मक्खियां निकलने लगी, जिस कारण खुदाई बंद करवा कर इस लिंग की विधिवत पूजा अर्चना की जाने लगी। सन् 2003 में मन्दिर समिति द्वारा मंदिर का विस्तार करवाया गया। मंदिर का गर्भ गृह 8×8 फीट का है जिसके मध्य में प्राकृतिक शिवलिंग स्थापित है, जो फर्श से एक फीट ऊंचा है। फर्श पर संगमरमर का पत्थर बिछा है।
शिव लिंग
मंदिर में विष्णु, गणेश, शिव पार्वती जी की मूर्तियाँ हैं, जो लाखामंडल की मूर्तियों से मिलती है। लिंग के ऊपर लोहे का स्टैंड लगा है, जिस पर ताम्र पात्र सदैव जल से भरा रहता है ताम्र पात्र के पेंदे से पानी की बूंदे टप टप की ध्वनि के साथ शिवलिंग पर गिरती रहती हैं। वहीं शिवजी के त्रिशूल व डमरू लटके हैं। ऊपर से घंटियां लटकी हुई है। दीवार में एक ओर ढेर सारे तांबे के लोटे रखे हैं तथा दूसरी ओर दीवार में पत्थर का गहरा दीपक रखा है।
इस दीपक का प्रयोग श्रावण मास में अखंड दीपक के समय किया जाता है। इसे घी से भरकर कई दिनों तक घी डालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। हर श्रावण मास में एक माह तक अखंड दीपक जनकल्याण हेतु दिया जाता है। यहीं पर पुजारी बैठते हैं।
मंदिर की पूजा अर्चना रौन गाँव के बिजल्वाण जाति के सत्रह परिवार बारी-बारी से करते हैं। गर्भ गृह के बाहर चारों ओर परिक्रमा करने व पंडितों की पाठ पूजा करने हेतु पर्याप्त स्थान है। गर्भ गृह के बाहर अब दो कमरे पंडितजनों व भक्तों के बैठने के लिए बनाए गए हैं। मंदिर की छत ढालदार टीन की चादरों से बनी है। यहाँ पर भारी बर्फबारी होती है। इसलिए टीन की चादर का प्रयोग किया गया है। हवन करने हेतु उत्तर दिशा में यज्ञशाला बनी है। यहाँ पर यात्रियों के रात्रि विश्राम व ठहरने के लिए धर्मशालाएं एवं भोजन बनाने के लिए बर्तन भी उपलब्ध है।
यहाँ की महिमा को देखते हुए 2003 में यमुनानगर निवासी एक भक्त द्वारा एक धर्मशाला का निर्माण करवाया गया। भविष्य में इस स्थान के लिए हाटकोटी पैटर्न पर विकसित करने की भी योजना है, जिस पर समिति द्वारा विचार विमर्श किया जा रहा है। मन्दिर परिसर में पानी का प्राकृतिक स्रोत है जो एक कुंड के माध्यम से बाहर निकलता है कुंड में भक्तजन स्नान करते हैं।
लोक आस्था का केंद्र
कमलेश्वर महादेव में श्रद्धालु जनों का विश्वास है कि यहां पर जप तप करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। कमलेश्वर महादेव सभी प्रकार के मनोकामना पूर्ण करने वाला तीर्थ है; इसी आस्था और विश्वास से हजारों लोग यहां पर आते हैं । कमलेश्वर के जल से कमल गंगा- बाबा भोलेनाथ के चरणों से निकलने वाली जलधारा जब इस नदी में मिलती है; वहीं से यह कमल गंगा कहलाती है। कमल गंगा इस घाटी की जीवन रेखा है। औषधीय गुणों से युक्त लाल चावल इस जलधारा के ही कारण है। इस लाल चावल ने इस घाटी को एक विशेष पहचान दिलाई है।
सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा॥
कुंडल कंकन पहिरे ब्याला। तन बिभूति पट केहरि छाला॥1॥ससि ललाट सुंदर सिर गंगा। नयन तीनि उपबीत भुजंगा॥
श्री तुलसीदास रचित रामचरितमानस
गरल कंठ उर नर सिर माला। असिव बेष सिवधाम कृपाला॥2॥
शिवरात्रि महापर्व
भगवान शिव अनेक रूपों में विद्यामान हैं। सत्व, रज और तमोगुण अर्थात त्रिगुण सृष्टि में भगवान शिव प्रधान देव हैं। तम का अर्थ – भगवान शिव के पक्ष में निम्न वाची ना होकर अतिगूढार्थ वाचक है। सृष्टि में मानव ने जिन-जिन वस्तुओं को उपेक्षा भाव से देखा उपयोग के अयोग्य समझा; भगवान् शिव ने उन सभी को धारण किया। भगवान शिव का लौकिक स्वरूप निम्न रूप वर्णित है:
भगवान शिव के संपूर्ण शरीर पर चिता की भस्म का लेप है ,खाद्य सामग्री बिष व बिषैले पदार्थ हैं। जटाधारी होने के साथ-साथ वे गले में सांपों को लपेटे रहते हैं। भगवान शिव का दिगंबर स्वरूप है; अर्थात नग्नवेश में रहते हैं वह मुंडों की माला को धारण करते हैं। इस प्रकार से निकृष्ट वस्तुओं को धारण करके भी भगवान शिव का उत्कृष्ट स्वरूप है। अमंगल रूप धारण करते हुए भी वह समस्त मंगलों को देने वाले हैं। यद्यपि लौकिक रूप में चिता की भस्म की कहीं भी कोई उपयोगिता नहीं है; परंतु भगवान शिव जब इस भस्म को अपने श्रृंगार की सामग्री बनाते हैं तो भक्तजन ‘कर्पूर गौरम करुणावतारं संसारसारं भुजगेंद्रहारम्’ आदि से उनकी स्तुति करते हैं।
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।।कर्पूरगौरं – कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।
करुणावतारं – करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।
संसारसारं – समस्त सृष्टि के जो सार हैं।
भुजगेंद्रहारम् – जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।
सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि – भगवान शिव माता पार्वती सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।
भगवान शंकर ने समुद्र मंथन से उत्पन्न विष को पीकर नीलकंठ की उपाधि प्राप्त की। विष बुराइयों और दुर्गुणों का पर्याय है; भगवान शिव ने समस्त बुराइयों और दुर्गुणों को लोक कल्याण के लिए अपने अंदर समाकर देवों में महादेव की उपाधि धारण की। सांपों से सभी मानवों को भय रहता है परंतु भगवान शिव उनको अपने गले का हार बना लेते हैं।
जिसको हम अपना शत्रु मानते हैं यदि उनको उचित स्थान और सम्मान दिया जाए, तो वह भी हमें अपने समस्त बैरभाव को भुलाकर समाज में उच्च स्थान दिला सकते हैं। भगवान शिव का लौकिक रूप अमंगल रूपी है परंतु वास्तव में मानव का अमंगल तब होता है जब उसके मन मंदिर में भगवान शिव के मंगलमय स्वरूप का लोप हो जाता है ।
शांत वातावरण, शीतल मन्द मन्द पवन के झोंके, कलरव करते पशु-पक्षी, सुनसान वन में ऐसा लगता है मानो दूर कहीं से ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय…. की धुन आकर हमारे कानों व मन मस्तिष्क को पवित्र कर चली जा रही हो। ऐसा शांत वातावरण पाकर भक्तजन शिव की भक्ति में डूब जाते हैं। कमलेश्वर में शिवरात्रि पर्व पर बहुत बड़ा मेला लगता है।
इस पर्व के अवसर पर प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों सहित हजारों लोग इस मेले में आते हैं। मन्दिर समिति द्वारा मेले में व्यापक व्यवस्था की जाती है। शिवरात्रि के दिन अत्याधिक भीड़ होने के कारण मंदिर के गर्भ गृह तक बहुत मशक्कत के बाद ही पहुंच सकते हैं।
देवाधिदेव भगवान शंकर आज के दिन सुगंधित धूप, दूध, घी, मक्खन, शहद, फल-फूलों से ढके रहते हैं। मन्दिर परिसर में असंख्य भीड़ तथा वहीं दूसरी ओर विद्वान व्यासों द्वारा कल्याणकारी शिव पुराण की कथा का प्रवचन होता है। भक्त जन शिव की भक्ति रूपी सागर में डूबकी लगाते हुए मद मस्त हो जाते हैं।
परिसर में संत कमलनाथ जो सदैव यहीं पर रहते हैं। कमल नाथ जी अपने हाथों से निर्मित भगवान शंकर का प्रसाद भक्तों को देते हैं, जिसमें नाना प्रकार की जड़ी-बूटी, फल, दूध, घी, काजू, बादाम, किसमिस व मेंवा मिष्ठान मिश्रित किए हुए रहते हैं। भक्तजन शिवलिंग पर जल चढ़ाकर संतो, ब्राह्मणों, पुजारियों का आशीर्वाद प्राप्त कर, प्रसाद लेकर अपने-अपने घरों को चल पड़ते हैं। कमलेश्वर महादेव मंदिर में शिवरात्रि और श्रावण मास में पूजा अर्चना का विशेष महत्म्य माना जाता है।
संत कमलनाथ 50 वर्षों से साधनारत
कमलेश्वर में कमलनाथ जी -कमलेश्वर में बाबा कमलनाथ जी जुलाई 1977 से यहां पर रह रहे हैं, इससे पूर्व नोमीनाथ कमलेश्वर में रहते थे। इनके समाधिस्थ होने के बाद 17 जुलाई 1977 को कमलनाथ जी गद्दी पर सुशोभित हुए और आज तक अविरल कमलेश्वर महादेव में तपस्यारत हैं। जो भी श्रद्धालु भक्त कमकमलेश्वर मे जाते हैं। वे भोजन चाय बिना नही लौटते हैं।
पुत्र कामना पूर्ण होती है कमलेश्वर मंदिर में
आस्था व विश्वास के महादेव कमलेश्वर महादेव मनोकामना पूर्ण करने वाले भव्य दिव्य मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो श्रावण मास एवं शिवरात्रि को घी का अखंड दीपक हाथ में लेकर पूरी रात्रि पूजा ध्यान करते हैं; उनकी पुत्र कामना पूर्ण होती है। ऐसे क्षेत्र में बहुत से उदाहरण है। इसी आशा व विश्वास को लेकर भक्त दूर-दूर से यहाँ पूजा अर्चना करने आते हैं और भगवान आशुतोष उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। आखिर कोई बात तो है शिवरात्रि पर्व हो या श्रावण मास यहाँ भक्तों का तांता लगा रहता है।
बच्चे, बूढ़े, जवान, नर-नारियां, अपने छोटे-छोटे बच्चों को गोद में उठाकर, पीठ में सामान लेकर ‘ओम नमः शिवाय’ के जयकारे के साथ भोले के दरबार के लिए चढ़े चले जा रहे हैं। रात भर दीपक लेकर खड़े खड़े भगवान भोले का ध्यान करते हैं। ऐसे बाबा के भक्तों, श्रद्धालुओं को देखकर तो एक बार मुंह से निकल ही जाता है कि आखिर कमलेश्वर महादेव में कोई बात तो है। हर हर महादेव!
दर्शन का समय
कमलेश्वर महादेव में सदैव दो पुजारी पूजा-अर्चना करते हैं।
ग्रीष्मकाल में मंदिर 4:00 बजे प्रात: दर्शनार्थ खोल दिया जाता है। 6:00 बजे से 7:00 बजे के बीच श्रृंगार पूजा अर्चना होती है। सायं को आरती पूजा 7:00 से 8:00 बजे के बीच होती है।
शीतकाल में – प्रात:6:00 बजे मंदिर दर्शनार्थ खोल दिये जाते है, और 7:30 से 8:30 तक श्रृंगार पूजा अर्चना होती है। सांय की आरती 6:00 से 7:00 बजे तक होती है।
- ग्रीष्मकाल – प्रात: श्रृंगार 06:00 – 07:00
- सायं आरती – 07:00 – 08:00
- शीतकाल – प्रात: श्रृंगार 7:30 – 8:30
- सायं आरती – 06:00 – 07:00
दर्शनीय स्थल
कमलेश्वर महादेव मंदिर के आसपास दर्शनीय स्थल-
- कपिलमुनि मन्दिर गुन्दियाट गांव एवं पोरा
- नवोदय विद्यालय धुनगिर
- हनोल महासू देवता मंदिर
- नेटवाड़
- सांकरी
- जखोल
- केदार कांठा ट्रैक (ऊंचाई:12500 फ़ीट)
- हर की दूँन ट्रेक (ऊंचाई:12467 फ़ीट)
- पुष्टरा बुग्याल ट्रेक (ऊंचाई:11581 फ़ीट)
- रूपिन सुपिन ट्रेक (ऊंचाई:12287 फ़ीट)
- देवक्यारा बुग्याल ट्रेक (ऊंचाई:13452 फ़ीट)
- सरु ताल ट्रेक (ऊंचाई:13780 फ़ीट)
आदि स्थान कमलेश्वर से 50-100 किलोमीटर की परिधि में हैं।
कमलेश्वर महादेव महात्म्य: पत्रिका
कमलेश्वर महादेव महात्म्य पर एक पत्रिका का प्रकाशन किया गया। जिसमें मुझे संपादन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस पत्रिका में विद्वानों के शास्त्र सम्मत विचारों को पढ़ने का शुभ अवसर मिलेगा। जिसमें 51 साहित्यकारों, लेखकों और कवियों की लेखन सामग्री प्रस्तुत की गई। इसी के साथ इस पत्रिका में व्यास, लेखक, कवि, साहित्यकार, समाजसेवियों ने मिलकर पत्रिका को एक बेहतरीन स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया है, जिससे उत्तराखंड के पांचवे धाम के रूप में प्रसिद्ध कमलेश्वर महादेव के प्रति लोगों की आस्था और विश्वास जाग सके। इसी उद्देश्य से इस पत्रिका का प्रकाशन किया गया।
मैं आशा करता हूं इस पत्रिका के प्रशासन से कमलेश्वर महादेव के बारे में शास्त्र सम्मत, लोकमत, मान्यताएं समाज तक पहुंचेगी और धर्म, संस्कृति की ओर लोग अग्रसर होंगे। कमलेश्वर महादेव के बारे में मान्यता है की जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ कमलेश्वर में पहुंचते हैं उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। निःसंतान दम्पतियों के लिए यह पीठ वरदान साबित हुआ है।
कैसे पहुंचे कमलेश्वर महादेव?
जो लोग दिल्ली, सहारनपुर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, कुमाऊं आदि से आ रहे हों, तो यहाँ पहुँचने के लिए सर्वप्रथम हमें देहरादून आना है। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून देश के सभी राज्यों से हवाई एवं रेल सेवा, बस सेवा आदि से जुड़ा है। देहरादून में आईएसबीटी, रोड़वेज स्टेशन, लक्ष्मी प्लाजा से पुरोला के लिए छोटी गाड़ियां भी उपलब्ध रहती है।
देहरादून से पहाड़ों की रानी मसूरी, केम्प्टीफॉल, जमुनापुल, नैनबाग, डामटा, नौगाँव होते हुए पुरोला पहुँचते हैं। पुरोला से शिमला, हर की दून रोड पर चलकर जरमोला पहुँचते हैं। यहाँ से 2 किलोमीटर जंगलात रोड है, जिस पर छोटी गाड़ियां चल सकती हैं। यहाँ से 2 किलोमीटर हल्की पैदल चढ़ाई पार कर पहुँचते हैं कमलेश्वर महादेव।
- स्थानीय परिवहन — टैक्सी, बस
- कहाँ रुकें ? — पुरोला
कमलेश्वर महादेव की गोद में, हर एक दिल से निकली प्रार्थना को सहारा मिलता है, हर एक के आँसू पोंछे जाते हैं, और हर एक तड़पते हुए दिल को सुकून मिलता है। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक आशीर्वाद मिलते हैं, जो सभी को शांति की शरण प्रदान करता है। जैसे ही हम कमलेश्वर महादेव की पवित्र भूमि की इस ज्ञानवर्धक यात्रा के पर्दे खींचते हैं, हमें उस गहन सांस्कृतिक विरासत की याद दिलाई जाती है; जो इसके सार में समाई हुई है।
यह शाश्वत शरणस्थली, भगवान शिव की दिव्य छटा के बीच बसी हुई, अनगिनत आत्माओं के लिए आशा और आस्था की मशाल के रूप में खड़ी है। कमलेश्वर महादेव से निकलने वाली पूर्णता और दिव्य अनुग्रह की कहानियाँ केवल कहानियाँ नहीं हैं; वे अटूट श्रद्धा की शक्ति के जीवंत प्रमाण हैं। यह वह स्थान है जहाँ निःसंतान दम्पतियों की मौन प्रार्थनाऐं प्रभु की कृपा के साथ गुंथी हुई एक ऐसी चमत्कारों की चादर बुनती है जो सामान्यता को पार कर जाती है।
कमलेश्वर महादेव का दिव्य आशीर्वाद हमेशा हमारी पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक बना रहे। समस्त श्रद्धालुओं के धर्म के पथ को प्रकाशित करते रहें और भक्तों की गहरी इच्छाओं को पूरा करते हुए अपनी असीम कृपा बरसाते रहें ।
शिव कल्याणकारी हैं। अत: सम्पूर्ण जीवन को कल्याणमय बनाने के लिए शिव उपासना जीवन का अभिन्न अंग होना चाहिए।
हर हर महादेव !