Chanseel Trek Mountain

हिमाचल और उत्तराखंड की अनछुई खूबसूरती का खजाना : चांशल

चांशल घाटी प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक विरासत और साहसिक पर्यटन का अनूठा संगम है।

क्या आप प्रकृति की गोद में बसे एक ऐसे स्थान की खोज में हैं जहाँ शांति, सौंदर्य और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम हो? तो चलिए आपको ले चलते हैं चांशल की सैर पर, जो हिमाचल और उत्तराखंड की सीमा पर स्थित एक अनोखा पर्यटन स्थल है।

भारत मे विविधताओं से भरा अलग-अलग सांस्कृतिक ,धार्मिक खूबसूरत खुशबू लिये हुए राज्य हैं। कोई प्राकृतिक सौंदर्य के लिए तो कोई अपने तीर्थो मंदिरों ,आस्था व विश्वास के लिए, कोई सांस्कृतिक लोकगीत संगीत, वन्य जीव संरक्षण, पार्क तो कोई स्मारक और प्राकृतिक सुंदरता के लिए दुनिया भर में मशहूर है ।यदि हम भारत के सैर पर निकल रहे हैं तो घर पर ही समझ लें कौन से राज्य की कौन सी खुशबू खास रहने वाली है ।
जहां इस वर्ष पहाड़ों में भी पारा 40 डिग्री सेल्सियस से 43 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, फिर महानगरों का तो क्या कहना। शहरों मे ए.सी. फटने लगे ऐसे में एक ही ऑप्शन बचता है उत्तराखंड की उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़ या हिमाचल के कुल्लू मनाली, चांशल आदि स्थल थोड़ा राहत दे सकते हैं ; आज आपको ले चलता हूं हिमाचल उत्तराखंड की सीमा पर खूबसूरत पर्यटक स्थल जहां 5 मिनट भी आदमी खड़ा नहीं रह सकता है इतनी ठंडी हवाएं, इसका नाम है– चांशल या चांशल घाटी ।

“सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहां ।
जिंदगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहां ।।”

Chanseel Peak

चांशल परिचय


यह मनमोहक पर्यटक स्थल समुद्र तल से 3800 मीटर (12467 फीट) की ऊंचाई पर हिमाचल और उत्तराखंड की सीमा पर स्थित है। यह राजधानी शिमला से 180 किलोमीटर और देहरादून से मसूरी, पुरोला, मोरी होते हुए 285 किलोमीटर दूर है। यह खूबसूरत स्थान पर्यटकों को अपनी मस्ती में झूमने के लिए मजबूर कर देता है।

चांशल, रोहड़ू से चिड़गांव और लरोट होते हुए 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चिड़गांव से निकल कर पावर नदी पार करते हुए, लरोट में चाय और नाश्ता मिल जाता है। आगे बढ़ने पर घने जंगलों में विशालकाय खरसो, मोरू, देवदार और भोजपत्र के पेड़ों का खजाना मिलता है।

जंगली जानवर पशु-पक्षी, कलरव करती हुई कर्णप्रिय संगीत सुनकर पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। विशालकाय पेड़ धीरे-धीरे पीछे छूटने लगते हैं, और मखमली बुग्याल, रंग-बिरंगे फूलों से सजे मैदान दूर-दूर तक फैले होते हैं, जो अपनी जादुई छवि से हर किसी के दिल को छू लेते हैं। इस दृश्य को देखकर मन में उस माली का ख्याल आने लगता है, जिसने इस प्रकृति को इस तरह से संजोया और बनाया है।

Chanseel Top

उसने लंबी-लंबी घाटियों, ऊंची-ऊंची चोटियों, स्वच्छ पानी से भरे तालों और उन तालों में पानी पीने के लिए आने वाले पशु-पक्षियों के दृश्य को समेटा है। ये सब एक मंत्र की तरह पर्यटकों को आकर्षित करते हैं और वे खुशी से झूम उठते हैं।

ऊंचाई: समुद्र तल से 3,800 मीटर (12,467 फीट)
स्थान: हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा पर
शिमला से दूरी: 180 किलोमीटर
देहरादून से दूरी: 285 किलोमीटर
सर्वोत्तम यात्रा समय: जून-जुलाई और सितंबर-अक्टूबर

महासू देवता मंदिर हनोल

चांशल की ओर यात्रा करते समय मार्ग में नौगांव आता है, जहां यमुना मां का पवित्र मंदिर सुंदर बाग-बगिचों और मनमोहक घाटियों के बीच स्थित है। आगे बढ़ते हुए, पुरोला की हरी-भरी घाटी में लाल चावल की खेती और उसकी अद्भुत सुंदरता देखने को मिलती है, जो सचमुच एक स्वर्गिक दृश्य प्रस्तुत करती है।

इसके बाद आप जरमोलाधार, मोरी से होते हुए हनोल पहुंचते हैं, जहां स्थित है महासू महाराज का दिव्य और भव्य मंदिर। यह मंदिर देहरादून और उत्तरकाशी जिले की सीमा पर स्थित है और इस क्षेत्र का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जौनसार-बावर और दूर-दराज से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यहाँ आते हैं।

यहाँ की एक अनोखी परंपरा है, जिसमें धूप और नमक राष्ट्रपति भवन से भेजे जाते हैं, जो इस स्थान की आस्था और विश्वास को और भी चमत्कारिक बनाता है; जो ठडियार पोस्ट ऑफिस से प्राप्त होता है और श्रद्धालु इनका बेहद आदर करते हैं। अचरज की बात यह है कि जब धूप और नमक समाप्त होने वाला होता है, तो यह बिना किसी सूचना के पहले ही यहाँ पहुंच जाते हैं, जो इस स्थान की पवित्रता को और भी अद्भुत बनाता है।

महासू महाराज चार भाई हैं, जिनमें से बोठा महासू हनोल में, पवासी महाराज ठडियार में, वासिक महाराज देवघार में, और चालदा महासू 12 साल साठी थोक और 12 साल पासी क्षेत्र में निवास करते हैं। हनोल मंदिर में श्रद्धालु पूरे साल आते रहते हैं।

यहाँ की एक विशिष्ट परंपरा है जिसे ‘रात लगाना’ कहा जाता है, जिसमें श्रद्धालु मंदिर परिसर में रात बिताते हैं। जिन श्रधालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, वे यहाँ बकरा, श्रीफल और प्रसाद चढ़ाते हैं। अब यहाँ पर बलि प्रथा पूरी तरह से समाप्त कर दी गई है।

सितंबर महीने में यहाँ जागरण (जागरा) होता है, जो अब एक राजकीय मेला बन चुका है। इस दिन यहाँ हजारों श्रद्धालु दर्शन और पूजा अर्चना के लिए एकत्रित होते हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हनोल मंदिर की कृति माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेंट कर हनोल मंदिर के मान सम्मान को बढ़ाया है।

हिमाचल और उत्तराखंड की सीमा पर स्थित प्राचीन मंदिर : माता हटेश्वरी

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा पर स्थित माता हटेश्वरी मंदिर एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, जो देहरादून से लगभग 240 किलोमीटर और शिमला से 130 किलोमीटर की दूरी पर पावर नदी के किनारे स्थित है। इस प्राचीन मंदिर का निर्माण दसवीं शताब्दी में किया गया था, और यह आज भी अपने भक्तों को आकर्षित करता है।

माता हटेश्वरी की 1.2 मीटर ऊंची मूर्ति: श्रद्धा और आस्था का प्रतीक

मंदिर में माता हटेश्वरी की 1.2 मीटर ऊंची मूर्ति स्थापित है, जो श्रद्धालुओं के लिए आस्था और शक्ति का प्रतीक मानी जाती है। यह स्थान अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए प्रसिद्ध है। इस कारण, दूर-दूर से लोग, विशेषकर हिमाचल, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश से, यहां आकर अपनी मन्नतें मांगते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं।

शिव मंदिर और पूजा-अर्चना का महत्व

मंदिर परिसर में एक शिव मंदिर भी है, जहां श्रद्धालु शिवलिंग की पूजा करते हैं। मंदिर में सदैव पूजा-अर्चना का माहौल रहता है, और यहां के शांतिपूर्ण और भक्तिमय वातावरण में हर कोई अपनी आत्मा को शांति और सुख की अनुभूति करता है।

Hatokoti Pandit ji

यहां की आस्था, शक्ति और शांति का अनुभव करने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं। इस मंदिर का इतिहास और धार्मिक महत्व आपको एक अद्भुत अनुभव देगा, जो जीवनभर याद रहेगा।

रोहड़ू

हिमाचल प्रदेश का रोहड़ू शहर एक शानदार और आकर्षक स्थल है, जो न केवल प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को भी दर्शाता है। रोहड़ू में पर्यटकों के लिए आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन यहां की पारंपरिक पोशाक, टोपी, वासकट, दाल-चावल, सेब, स्थानीय फल, सब्जियां और अनाज की गुणवत्ता भी अत्यधिक प्रचलित है। यह स्थान हिमाचल प्रदेश की खासियतों को महसूस करने का आदर्श स्थल है।

चांशल: एक मंत्रमुग्ध करने वाला पर्यटन स्थल

रोहड़ू से लगभग 48 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है चांशल, जो अपने अपूर्व प्राकृतिक सौंदर्य और शांति के लिए जाना जाता है। यहां का माहौल पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है और वे इसकी सुंदरता में खो जाते हैं। यहां की बर्फीली हवाएं, हरियाली और सुंदर दृश्य हर किसी को नाचने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

रोहड़ू और चांशल की दूरी:

  1. दिल्ली से चांशल – 500 किलोमीटर
  2. देहरादून से चांशल – 305 किलोमीटर
  3. पुरोला से चांशल – 170 किलोमीटर
  4. शिमला से रोहड़ू – 112 किलोमीटर
  5. रोहड़ू से चांशल – 48 किलोमीटर
  6. चांशल से क्वार – 40 किलोमीटर
  7. चांशल से डोडरा – 20 किलोमीटर

चांशल आने के लिए सर्वोत्तम मौसम

चांशल जाने का सबसे अच्छा समय जून से जुलाई के पहले सप्ताह तक और सितंबर से अक्टूबर तक है। इस दौरान मौसम सुखद और ठंडा रहता है। अक्टूबर से अप्रैल तक यहां बर्फबारी होती है, जिससे सड़कों पर कीचड़ हो जाता है और यात्रा करना कठिन हो सकता है। इसलिए, यदि आप चांशल की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो जून, जुलाई, सितंबर, और अक्टूबर में आना सर्वोत्तम होगा।

Forest

चांशल का ठंडा मौसम:

चांशल की ठंडी हवाओं का अनुभव करने के लिए आपको यहां के मौसम से परिचित होना होगा। यहां की ठंड इतनी तेज होती है कि कोई भी व्यक्ति दर्रे पर 5 मिनट से अधिक समय तक खड़ा नहीं रह सकता। जून में कभी-कभी यहां का तापमान शून्य से नीचे चला जाता है, जिससे यहां की ठंडी हवाओं का असर और भी ज्यादा महसूस होता है।

डोडरा

डोडरा, हिमाचल प्रदेश के शिमला जनपद में स्थित एक छोटा सा लेकिन खूबसूरत गांव है, जो उत्तरकाशी और हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बसा हुआ है। यह गांव अपनी सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक जीवनशैली के लिए खास पहचान रखता है। यहां के निवासी अपनी परंपराओं और संस्कृति को बड़ी श्रद्धा से संजोए रखते हैं, और यही कारण है कि डोडरा का आकर्षण दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

डोडरा पहुंचने का मार्ग और आकर्षण

डोडरा तक पहुंचने के लिए पहले केवल पैदल मार्ग ही उपलब्ध था, लेकिन अब यह गांव रोहड़ू से जुड़ चुका है और यहां मोटर मार्ग भी विकसित किया गया है, जिससे यात्रा करना पहले से कहीं ज्यादा आसान हो गया है।

डोडरा के ऊंचे-ऊंचे बहुमंजिले भवन, जिन पर खूबसूरत नकासीदार कलाकृतियां उकेरी गई हैं, पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं। इन भवनों में बसी संस्कृति और इतिहास को देखकर कोई भी पर्यटक उसकी बेजोड़ खूबसूरती का कायल हो जाता है।

Dodra Village

डोडरा की पारंपरिक वेशभूषा और स्थानीय भोजन

यहां की पारंपरिक वेशभूषा और स्वादिष्ट स्थानीय भोजन भी विशेष आकर्षण का केन्द्र है। डोडरा के लोग अपनी पारंपरिक पोशाक में बेहद खूबसूरत दिखाई देते हैं और उनका स्थानीय भोजन स्वाद में अनोखा होता है। यदि आप इस गांव की संस्कृति को पूरी तरह से समझना चाहते हैं तो आपको यहां के तीज-त्योहारों का हिस्सा बनना चाहिए, जो न केवल देखने योग्य होते हैं बल्कि यहां की खुशियों का भी अहसास कराते हैं।

डोडरा के मेले और देवालय

डोडरा का हर मेला और त्यौहार यहां के सांस्कृतिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। मेले, जो पारंपरिक खेलों, नृत्य, और संगीत से भरपूर होते हैं, पर्यटकों को एक अद्वितीय अनुभव देते हैं। इसके अलावा, डोडरा के देवालयों में पूजा-अर्चना की जाती है और ये स्थल न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं बल्कि यहां की शांति और सौंदर्य का भी अनुभव कराते हैं।

Dodra Temple

ऊंचे पहाड़ों के बीच बहती श्वेत धवल नदियां और सेब के बगीचे

डोडरा के प्राकृतिक दृश्य बेहद आकर्षक हैं। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के बीच से बहती श्वेत धवल नदियां, सेब के बगीचे और बर्फ से ढके पहाड़ पर्यटकों को एक स्वर्गिक अनुभव देते हैं। इन नजारों को देखकर हर कोई यहां की प्राकृतिक सुंदरता में खो जाता है। डोडरा में घूमने का यह अनुभव एक अनमोल यादगार बन जाता है।

डोडरा यात्रा का सर्वोत्तम समय

डोडरा जाने का सबसे अच्छा समय मई से अक्टूबर तक है, जब यहां का मौसम शुष्क और ठंडा होता है। इन महीनों में पर्यटक आराम से घूम सकते हैं और डोडरा की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं। सर्दियों में बर्फबारी के कारण यात्रा में कठिनाइयाँ हो सकती हैं, इसलिए यहां जाने के लिए यह मौसम सबसे अच्छा है।

क्वार

कवार, हिमाचल प्रदेश का एक छुपा हुआ गांव है जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और साहसिक पर्यटन के लिए प्रसिद्ध है

कवार, हिमाचल प्रदेश का एक अद्वितीय और खूबसूरत गांव है, जो रोहड़ू से लगभग 90 किलोमीटर दूर स्थित है। यह गांव डोडरा से 21 किलोमीटर की दूरी पर, एक नदी को पार करते हुए पहुंचा जा सकता है। हिमालय की गोदी में बसा यह गांव अपनी दुर्गम भौगोलिक स्थिति और कठिन पहुंच के कारण “हिमाचल का काला पानी” के नाम से भी जाना जाता है। यहां की यात्रा कोई साधारण यात्रा नहीं है, यह एक साहसिक यात्रा है जो असाधारण सौंदर्य और रोमांच से भरपूर है।

क्वार की भौगोलिक स्थिति और विकास

कवार की भौगोलिक स्थिति बेहद दुर्गम है, जिससे यहां पहुंचने में कठिनाई होती है। हालांकि, इस गांव में तहसील, चिकित्सालय और कॉलेज जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन सड़क निर्माण धीमी गति से होने के कारण यहां का विकास अपेक्षाकृत धीमा है। फिर भी, इसके प्राकृतिक सौंदर्य और साहसिक गतिविधियों के कारण यह पर्यटकों के बीच एक आकर्षण का केंद्र बन चुका है।

Qwaar Village

कवार के साहसिक पर्यटन की संभावनाएं

कवार के वादियों और घाटियों में साहसिक पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। यह स्थान ट्रैकिंग, पैराग्लाइडिंग, रिवर राफ्टिंग और स्कीइंग जैसी एडवेंचर गतिविधियों के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। यदि आप साहसिक खेलों के प्रेमी हैं, तो कवार आपके लिए आदर्श स्थल है। यहां की बर्फ से ढकी चोटियां, घने जंगल, शांत झीलें और हरे-भरे मैदान आपको रोमांच और आनंद का अनुभव कराते हैं।

कुदरती सुंदरता और पर्यटन

कवार अपनी कुदरती सुंदरता के लिए भी जाना जाता है। यहां के बर्फ से ढके पहाड़, घने जंगल, शांत झीलें और लम्बे चौड़े मखमली बुग्याल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहां की वादियां और घाटियां आपको शांति और सौंदर्य का अहसास कराती हैं। हिमाचल प्रदेश के अन्य हिस्सों की तरह, क्वार में भी आपको विभिन्न प्रकार के जलप्रपात, नदियां और झीलें देखने को मिलेंगी जो इस जगह को और भी खास बनाती हैं।

कला और संस्कृति: हिमाचल की समृद्ध विरासत

क्वार के लोग अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं के लिए भी प्रसिद्ध हैं। यहां के स्थानीय त्योहारों और मेले पर्यटकों के बीच खासा आकर्षण रखते हैं। आप इन त्योहारों में भाग लेकर यहां की पारंपरिक कला और संस्कृति का अनुभव कर सकते हैं। क्वार में स्थानीय लोगों की जीवनशैली, उनके रीति-रिवाज और त्योहारों का हिस्सा बनना निश्चित ही एक अद्वितीय अनुभव होगा।

क्वार यात्रा का सर्वोत्तम समय

क्वार यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय मई से अक्टूबर तक है, जब यहां का मौसम ठंडा और सुखद होता है। इन महीनों में यहां की प्राकृतिक सुंदरता और साहसिक गतिविधियों का पूरी तरह से आनंद लिया जा सकता है। सर्दियों में बर्फबारी के कारण यात्रा में कुछ कठिनाइयां आ सकती हैं, इसलिए इन महीनों में यात्रा करने का विचार करें।

चांशल की प्राकृतिक विशेषताएं

प्राकृतिक आकर्षण: चांशल की अद्भुत सुंदरता

चांशल, हिमाचल प्रदेश का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है जो अपनी प्राकृतिक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां के दृश्य मन को मोह लेते हैं और हर किसी को प्रकृति के करीब ले आते हैं।

1. मखमली बुग्याल
यहां के मखमली बुग्याल, हरे-भरे मैदानों की शोभा बढ़ाते हैं, जो पर्यटकों को एक शांतिपूर्ण अनुभव प्रदान करते हैं। यह दृश्य हर किसी के दिल को छू जाता है।

2. बर्फीली चोटियां
चांशल की बर्फीली चोटियां, ठंडे मौसम में बर्फ से ढकी रहती हैं, जो साहसिक पर्यटकों के लिए एक बेहतरीन स्थल बन जाती हैं।

3. देवदार के घने जंगल
यहां के घने देवदार के जंगलों में ट्रैकिंग और प्राकृतिक शांति का अनुभव किया जा सकता है।

4. खरसू, मोरू और भोजपत्र के वृक्ष
चांशल के जंगलों में खरसू, मोरू और भोजपत्र के वृक्ष छाए हुए हैं, जो इस स्थल की जैविक विविधता को दर्शाते हैं।

5. झरने और प्राकृतिक जलस्रोत
प्राकृतिक जलस्रोत और झरने चांशल की सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं। इनका दृश्य बेहद मनमोहक और शांतिपूर्ण है।


एडवेंचर एक्टिविटीज: साहसिक प्रेमियों के लिए चांशल का आदर्श स्थल

चांशल सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए नहीं, बल्कि साहसिक गतिविधियों के लिए भी जाना जाता है। यहां पर पर्यटकों को रोमांचक अनुभव मिलते हैं।

1. ट्रैकिंग
चांशल के खूबसूरत रास्तों पर ट्रैकिंग करने का अनुभव अद्वितीय है। यहां की पहाड़ी राहों और जंगलों में ट्रैकिंग एक बेहतरीन साहसिक गतिविधि है।

2. रिवर राफ्टिंग
रिवर राफ्टिंग के शौकिनों के लिए चांशल का खूबसूरत वातावरण आदर्श है। झरनों और नदियों के बीच राफ्टिंग करना बहुत रोमांचक होता है।

3. पैराग्लाइडिंग
हवा में उड़ने का सपना देखने वाले पर्यटकों के लिए पैराग्लाइडिंग चांशल में उपलब्ध है। यह अनुभव अद्वितीय और रोमांचक है, जहां आप ऊंचाइयों से सुंदर दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।

चांशल यात्रा का सर्वोत्तम समय

1. अनुकूल मौसम
चांशल यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय जून से जुलाई और सितंबर से अक्टूबर तक है। इस समय मौसम सुहावना रहता है, और आप यहां के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं।

2. यात्रा से पहले मौसम की जानकारी आवश्यक
अक्टूबर से अप्रैल तक चांशल में बर्फबारी होती है, जिससे यात्रा में मुश्किलें आ सकती हैं। इस मौसम में कीचड़ और बर्फ की स्थिति सड़क पर यात्रा को चुनौतीपूर्ण बना सकती है, इसलिए इस समय यात्रा से बचना चाहिए।

यात्रा के दौरान आवश्यक सावधानियां

1. आवश्यक सामान
चांशल यात्रा के दौरान आपको कुछ महत्वपूर्ण चीजें साथ ले जानी चाहिए:

  • गर्म कपड़े: चांशल का मौसम काफी ठंडा रहता है, इसलिए गर्म कपड़े जरूर साथ रखें।
  • जरूरी दवाइयां: अपनी नियमित दवाइयां और प्राथमिक चिकित्सा किट रखना न भूलें।
  • पर्याप्त पानी और खाद्य सामग्री: यात्रा के दौरान पानी और नाश्ता साथ रखना महत्वपूर्ण है।
  • फर्स्ट एड किट: चोट लगने या किसी आपातकालीन स्थिति में काम आ सकती है।

2. पर्यावरण संरक्षण

  • प्लास्टिक का उपयोग न करें: चांशल में प्राकृतिक संसाधनों का ध्यान रखते हुए प्लास्टिक का उपयोग न करें।
  • कूड़ा-कचरा निर्धारित स्थान पर ही डालें: पर्यावरण की सफाई के लिए कचरे को सही जगह पर डालें।
  • स्थानीय वनस्पति और जीवों का सम्मान करें: यहां के जीव-जंतुओं और पौधों का सम्मान करें और उन्हें नुकसान न पहुंचाएं।

यात्रा से पहले याद रखने योग्य टिप्स

  • मौसम की पूर्व जानकारी लें
  • उचित यात्रा योजना बनाएं
  • स्थानीय गाइड की सेवाएं लें
  • आवश्यक सामान की पूरी लिस्ट बनाएं
  • आपातकालीन संपर्क नंबर साथ रखें

हिमाचल के डोडरा क्वार सहित अनेक ऐसे पर्यटक स्थल है जो अपनी खूबसूरती के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है । यहां पर पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।

चांशल एक ऐसा स्थान है जहाँ प्रकृति अपने सबसे खूबसूरत रूप में दिखाई देती है। यह स्थान न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना है, बल्कि आध्यात्मिक शांति और साहसिक गतिविधियों का भी केंद्र है। अगर आप प्रकृति के बीच कुछ यादगार पल बिताना चाहते हैं, तो चांशल आपके लिए एक परफेक्ट डेस्टिनेशन हो सकता है।

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