Sundranand baba

2 लाख फोटो, एक संत, और हिमालय की अद्भुत यात्रा: स्वामी सुंदरानंद (Two Lakh Photos, One Saint, and the Wonderful Journey of the Himalayas)

स्वामी सुंदरानंद महाराज हिमालय को सात दशकों से कैमरे में कैद कर रहे हैं। हिमालय और गंगा को एक साथ यदि किसी ने आत्मसात किया हो तो तपोवन महाराज के परम शिष्य रहे, स्वामी सुंदरा नंद जी महाराज को भी अवश्य याद किया जाएगा। गंगोत्री-गोमुख से बद्रीनाथ तक जाने वाले मार्ग में अनेक चोंटियां हैं, जिनमें से उन्होंने कई चोटियों पर आरोहण किया। वहां की कठिन परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बिठाकर, उन्हें जानने समझने का प्रयास किया।

उनका मानना है कि भगवान को यदि कहीं एहसास या महसूस किया जा सकता है, तो उसके लिए यही ऊंची-ऊंची चोटियां, कंदरायें, विशालकाय गगनचुंबी हिमाच्छादित चोंटियां, पहाड़ और वृक्ष, कल-कल करती नदियां, कलरव करते पशु-पक्षियां, शांत-वादियां, घाटियां अर्थात इस प्रकृति में ही है। हिमालय हमारी भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि का उत्स (स्त्रोत) माना जाता है। हिमालय हमारा प्रहरी है, देवात्मा, रत्न खानी है, इतिहास है, विधाता है, संस्कृति-मेरुदंड है। हिमालय को देवाधिदेव भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। इसलिए महाकवि कालिदास ने हिमालय प्रदेश की संस्कृति को विश्व की संस्कृति का मानदंड बताते हुए कहा है-

“अस्युतरस्या दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः।
पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थितःपृथिव्याॅ इव मानदण्डः।। “

हिमालय की देन है- गंगा, यमुना, सदानीरा। इन के पवित्र जल जहां एक ओर हमें पीने के लिए जल, फसलों को सिंचाई के लिए पानी, लाखों-करोड़ों लोगों को रोजगार, भरण-पोषण करती हैं, वहीं अंत में मोक्ष प्रदान करती है।

कुमारसंभवम् /प्रथमः सर्गः

” नमामि गंगे तव पाद पंकजम् सुरसुरैर्वन्दित दिव्यरूपं ।
भुक्ति च मुक्तिमं च ददासि नित्यं भावानु सारेण सदा नराणाम।”

 Aarti dedicated to Ganga Ji

हिमालय और गंगा को समीप से एवं हृदय की गहराई से यदि जानने समझने की कोशिश की है तो वह हैं, सात दशक से साधक साधनारत बाबा जिनका नाम है- सुंदरानंदhttps://en.wikipedia.org/wiki/Swami_Sundaranand

वहां पर मिलने का समय लिया तो पहले से ही कोई मिलने गये थे, इसलिए मुझे आर्ट गैलरी दिखाने ले गए। फोटो गैलरी में जैसे ही मैंने प्रवेश किया एक से बढ़कर एक फोटोऐं देखकर मै आश्चर्य मे‌ पड़ गया। एक बाबा जी और इतनी‌ फोटो; कहीं गगनचुंबी चोंटियों तो कहीं ऊंचे-ऊंचे झरने, झील, घने जंगल, यात्रा मार्ग, ट्रैकिंग करते हुऐ, पहाड़ की नारी सौंदर्य, अटल जी द्वारा पुस्तक का विमोचन करते हुए, गुरु तपोवन महाराज जी की तपस्यारत फोटो, स्थानीय संस्कृति, पौराणिक लोकजीवन इसके अलावा एक दर्जन से अधिक ट्रेक रूट, वन्य जीव, ताल, बुग्याल, पहाड़ों की संस्कृति, गुरु शिष्य की पौराणिक वस्तुओं की अनेक फोटोऐ संजोय हुऐ।

Sundranad trek to gangotri

एक-एक दुर्लभ फोटो जिन्हें देखकर नजर नहीं हटती थी। अपना भी फोटोग्राफी का शौक है फिर गहराई में डूबना भी स्वाभाविक था। फोटो खींचते रहे; देखते रहे साथ में गाइड यह सब कुछ समझाते रहे। दो मंजिलों में सुंदरानंद महाराज जी द्वारा खींची फोटो हैं तथा तीसरी मंजिल में योग एवं ध्यान केंद्र तैयार हो रहा । हम आर्ट गैलरी की कल्पनाओं में खोये हुए; जिसका नाम तपोवनम हिरण्यगर्भ है। इसे संजोने में महाराज के जीवन के महत्वपूर्ण 72 वर्षों की कठिन कला साधना है, जिसे कलाकार ही समझ सकता है। एक बाबा जी और दुर्लभ फोटों का इतना बड़ा संग्रह, इतने कठिन मार्गों से ट्रैकिंग, पर्वतारोहण –बहुत से ऐसे प्रश्न मन मस्तिष्क में हिलोरे लेने लगे।

सुन्दरानंद जी

बाबा जी से मिलने का समय मिला, दंडवत प्रणाम करते हुए मैंने बात को आगे बढ़ाते हुए स्वास्थ्य के बारे में हालचाल जाना।
महाराज जी आपने इतने कठिन मार्ग को अपना शौक कैसे बना लिया? मेरे प्रश्न को सुनकर थोड़ा रुक कर बोले।

मेरा जन्म 1926 में आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के अनंतपुरम गांव में हुआ। मुझे पढ़ाने के लिए बहुत से प्रयास हुए लेकिन मैं कक्षा चार तक की पढ़ पाया। मेरा बचपन का नाम सुंदर रामैया था। मेरा बचपन भी अन्य सामान्य बालकों की तरह ही था, अंतर केवल इतना था कि मैं आध्यात्मिक, धार्मिक कथाओं, आयोजनों में अधिक रुचि रखता था; लेकिन समय ने करवट ली और मैं 15 अगस्त 1947 को घर छोड़कर अज्ञांत मार्ग पर चल पड़ा। जहां एक और देश स्वतंत्रता का जश्न मना रहा था; वही मैं माता जी को प्रणाम कर एक अज्ञांत मार्ग पर चल पड़ा।

मैं घर से यह निश्चित कर निकाला था कि अब पुनः घर वापस नहीं आऊंगा। यह मेरा भगाने का तीसरा प्रयास था। अब मैं अपने घर गांव को मुड- मुड़ कर देख रहा था कि अब वापस नहीं आऊंगा; अपने गांव को देख नहीं पाऊंगा। मेरे नैनों से अश्रु धारा बह रही थी। यहां से विशाखापट्टनम धर्मशाला पहुंचा और रात्रि विश्राम यहीं किया । वहीं से स्यालदाह कोलकाता पहुंचा। कुछ दिन बाद में वहां से काशी पहुंचा, ट्रैन में मेरे पैर में चोट लग गई थी। काशी में मैं मणीकर्णिका घाट पर एक बाबा जी के यहां रहने लगा, खाना लोग मुझे खिला देते थे। एक दिन बाबा ने कहा,”मेरे साथ हरिद्वार चलोगे?” मैंने खुशी-खुशी हां कह दिया।

Sundranand Baba

यहाँ से मैं बाबा जी के साथ हरिद्वार पहुंच गया। वहां पर माणिक स्वामी जी के साथ रहा। स्वामी जी का एक शिष्य था- ‘राम स्वामी’; वह एक दिन बोला,” मेरे साथ हिमाचल चलोगे ?” हम दोनों इस यात्रा पर निकल पड़े। ज्वाला देवी, चिंतापूर्णी देवी, वैष्णो देवी, रघुनाथ मंदिर आदि के दर्शन किए और फिर वापस हरिद्वार माणिक स्वामी के यहां आ गये । मैं 20 दिन तक यहां पर रहा; मेरा स्वास्थ्य खराब हो गया था। मुझे मूर्छित अवस्था में कुछ लोगों द्वारा कनखल स्थित ‘रामकृष्ण मिशन’ ले गये। जब होश आया तो मैंने अपने को गद्दे पर लेटा पाया। जब स्वस्थ हो गया तो आगे बढ़ने की सोची और एक दिन ऋषिकेश पहुंच गया।

मेरे पांव में चप्पल नहीं थी, ओर मैं नंगे पैर ही ऋषिकेश काली कमली अन्न क्षेत्र पहुंचा गया । यहां प्रातः काल साधु संतों को भोजन वितरण किया जाता है‌। मैं भी साधु संतों की लाइन में खड़ा हो गया, थोड़ी देर बाद एक कोतवाल आया और मुझे कान पड़कर कतार से बाहर कर दिया क्योंकि मैं साधु नहीं था ।

एक ग्रस्त ने मुझे स्वामी दयानंद गिरी जी महाराज के यहां ले गया। उन्होंने मुझे अपना शिष्य बना दिया। तब मुझे पता चला कि जो मुझे यहां लाए। वही काली कमली अन्न क्षेत्र के प्रबंधक हैं धर्मदत्त रतूड़ी। स्वामी दयानंद गिरी महाराज ने अगले दिन मुझे दीक्षा दी और मुझे कहा आज से तुम साधु हो। उन्होंने ही मुझे सुंदरानंद नाम दिया।\

अब मै भिक्षा के लिए काली कमली अन्न क्षेत्र पहुंचा। जिस कोतवाल ने कान पड़कर बाहर कर दिया था अब वही बदंन कर रहा था। मुझे आश्चर्य था कि भगवा वस्त्र धारण कर लोगों में इतना परिवर्तन कैसे हो‌ जाता है। कुछ दिन रहने के बाद स्वामी दयानंद गिरी जी से आज्ञा लेकर आगे बढ़ा और स्वर्ग आश्रम पहुंचा। वहां पर स्वामी सत्यानंद जी से भेंट हुई वह कहने लगे 30 किलोमीटर आगे वशिष्ट गुफा है।

वहां तपस्या करोगे, मैंने हां बोलकर उनकी सभी शर्तें मान ली। मैं गुफा में रहने लगा मेरा मंत्र “ओम नमः शिवाय” था स्वामी दयानंद गिरी महाराज ने बताया था कि कुंभक करो तो सिद्धि मिलेगी। गुफा में तपस्या करते हुए तीसरे दिन विचित्र अनुभव हुआ पूरा वातावरण शिवमय हो रहा था। मैं अपने को ऊपर की ओर उड़ता हुआ पा रहा था। कुछ दिन के बाद मै मुनि की रेती आ गया। वहां पर देवी मंदिर में तपस्या की। एक माह तक यहां रहा।

मैने तपोवन महाराज जी के बारे में सुना था। उनसे मिलने की प्रबल इच्छा थी। तपोवन महाराज उत्तरकाशी में रहते थे। पैदल ही उत्तरकाशी के लिए चल पड़ा। मैं पैदल उत्तरकाशी पहुंचा, नंगे पैर, पैर से खून निकल रहा था, लेकिन मेरा मौन व्रत था। ना अपने कष्ट के बारे में सोचूंगा और ना किसी से बोलूंगा। जैसे ही महाराज की समीप पहुंचा, महाराज जी ने पूछा,”‌पहुच गया?” मैंने गर्दन हिला कर हां किया। मैंने दंडवत प्रणाम किया और मुझे मौन देखकर बोले,”तुम अभी बालक हो, अभी से हठ धर्म का सहारा? यह केवल पाखंड है; क्या ईश्वर का दर्शन करोगे?” मैंने मौन त्याग दिया और बातें करने लगा। किंतु स्वामी जी चुप हो गए।

महाराज जी ने गंगोत्री में 1921 में एक कुटिया बनाई थी। मैं यहीं महाराज जी के समीप कुटिया में रहने लगा। मैं यहां से यमुनोत्री भी गया। एक दिन महाराज जी गंगोत्री के लिए चल दिए लेकिन मुझे साथ चलने को नहीं कहा। मैं निराश हो गया, मेरा मन नहीं लग रहा था।

मैं उत्तरकाशी से गंगोत्री के लिए पैदल निकल पड़ा। मैं घर से 1947 को निकला और 1948 ग्रीष्म ऋतु में गंगोत्री पहुँचा। महाराज का पता कर मै दूसरे दिन गौरीकुंड के सामने महाराज की कुटिया है; यहीं पर गुरुदेव जी के दर्शन किये। धीरे-धीरे गुरु जी के सम्पर्क में आता रहा। उत्तरोत्तर अपनी साधना में आगे बढ़ता चला। यदि गुरु की कृपा हो जाय तो भगवान की कृपा भी हो जाती है।

अद्भुत है तपोवन महाराज की 100 वर्ष पुरानी कुटिया

Tapovan Kutiya

जिस कुटिया में मैंने महाराज के दर्शन किये। उस कुटिया का गुरुदेव स्वामी तपोवन जी महाराज ने 1921 में निर्माण करवाया था। इनके शरीर त्यागने के बाद उनके शिष्य सुंदरानंद महाराज ने इस कुटिया का संरक्षण एवं रख रखाव किया। कुटिया आज भी जस की तस है।

हिमालय को 72 वर्षों से कर रहे हैं कैमरे में कैद

सुंदरानंद महाराज हिमालय को सात दशकों से कैमरे में कैद कर रहे हैं। स्वामी जी ने बताया कि – 1955 में मैं गोमुख बद्रीनाथ पैदल मार्ग में अपने सात पर्यटक साथियों के साथ यात्रा कर रहा था। इसी बीच अचानक बर्फीला तूफान आ गया। जिसमें वह अपने साथियों सहित सुरक्षित निकल पाये।

Sundranad photography

इसके पश्चात उन्होंने हिमालय के विभिन्न रूपों को कैमरे में कैद करने की ठान ली। तभी महाराज ने 19 में ₹25 में एक कैमरा खरीदा और शानदार फोटोग्राफी का सुहाना सफर प्रारंभ हो गया। उन्होंने कालिंदी शिखर पर दस बार चढ़ाई की। स्वामी जी गंगोत्री गोमुख की यात्रा 108 से अधिक बार कर चुके हैं। गंगोत्री से बद्रीनाथ 8 बार हिमालय के भितर से तथा दो बार विपरीत दिशा से यात्रा करने वाले पहले भारतीय पर्यटक थे। मेरे फोटो लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। सन् 1956 से 1984 तक 8 एल्बम बना लिए थे। एक विद्वान ने एल्बम में हिमालय का चित्रण देख कर यह श्लोक लिखा –


हिमालयस्य माहात्म्यम ज्ञात येन महात्मना। वंधा यः सुंदरानंदो योगी योग विदाम्बर।

दर्शितम विविधता रूपमा चित्रस्य देवतात्मना। प्रामाण्यम् भजते सोयम् हिमवत् विषये सदा।।

दुर्भाग्यवश 1984 में ही यह 8 एल्बम किसी ने चोरी कर लिये थे। सन् 1956 में उत्तरकाशी में लगभग 6 इंच बर्फ गिरी थी। मैंने 9 फुट ऊंचा शिवलिंग बनाकर खूब फोटो खींची।

स्वामी जी की फोटो प्रदर्शनी माघ मेले में भी लगती थी। इनके स्लाइड शो आई एम ए देहरादून, दिल्ली ,सहारनपुर सहित देश के विभिन्न राज्यों में स्लाईड शो दिखा चुके हैं। भूकम्प की‌ पहले‌ ही की घोषणा ‌- 20 अक्टूबर 1991 के भूकंप के बारे में महाराज ने लोगों को पहले ही बता चुके थे। उन्होंने पशु-पक्षियों को दो दिन पूर्व हरकत करते देखा था। जो भूकम्प की आहट देते हैं लेकिन कुछ ने विश्वास किया कुछ ने नहीं किया। इस विनाश लीला के भी उन्होंने कई फोटोग्राफ्स लिए थे।

हिमालय ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न राज्यों का किया भ्रमण

गंगासागर, जगन्नाथ पुरी, सूर्य मंदिर कोणार्क, विशाखापट्टनम, गोदावरी तट, राजमुदरी, कन्याकुमारी, हैदराबाद, नर्मदा महेश्वर, महाकाल उज्जैन, प्रयागराज, दिल्ली, राजस्थान, जोधपुर, जैसलमेर, हिमाचल, जम्मू , पंजाब आदि अनेक राज्यों के धार्मिक सांस्कृतिक इतिहास को जानकर आत्मसात करने का प्रयास किया। मुझे लगा जहां उन्हें कुछ गलत लगा उस पर वैचारिक चोट करने का भी प्रयास किया।

1962 में सेना के पथ प्रदर्शक भी रहे

गंगोत्री, हिमालय के हर दर्रे के बारे में जानकारी होने के कारण 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान सेना की बॉर्डर स्काउट के पथ प्रदर्शक रह चुके हैं। स्वामी सुंदरानंद बताते हैं कि भारत चीन युद्ध के दौरान एक माह तक सेना के साथ रहकर उन्होंने कालिंदी, पुलम, थागला, नीलापाणी, झेलखाका बॉर्डर एरिया में जवानों का मार्गदर्शन किया।

हिमालय थ्रू द लेंस ऑफ ए साधु पुस्तक का विमोचन

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेय जी ने किया था पुस्तक का विमोचन। हिमालय दर्शन, यात्रा, पर्वतारोहण की दुर्लभ तस्वीरें एवं अनुभवों को वर्ष 2002 में पुस्तक के रूप में पाठकों के समक्ष रख चुके हैं

स्वामी जी की 72 वर्ष की तपस्या का संग्रह है तपोवनम हिरण्यगर्भ आर्ट गैलरी

Art Gallery

यदि हिमालय गंगा व प्रकृति का एक साथ एक ही स्थान पर दर्शन करना चाहते हैं, तो इस आर्ट गैलरी को देखकर कर सकते हैं। 70 वर्षों में आये प्राकृतिक बदलाव को यहां पर फोटो के माध्यम से देखा जा सकता है। पर्यटक, पर्वतारोहियों, योग प्रेमियों, प्रकृति प्रेमियों को यहां हिमालय व गंगा की कई दुर्लभ फोटों को एक साथ एक ही स्थान पर देखने का सौभाग्य मिलेगा; तो वहीं ध्यान टावर में योगाभ्यास कर सकेंगे। स्वामी सुंदरानंद महाराज ने लगभग ढाई लाख फोटो खींचकर सर्वश्रेष्ठ दुर्लभ 1000 फोटो आर्ट गैलरी में दर्शनार्थ रखी हैं।

योग्य शिष्य न मिलने के कारण आर एस एस (RSS) पर जताया भरोसा

स्वामी जी ने मुझे बताया कि कोई योग्य शिष्य न मिलने के कारण मैंने यह आर्ट गैलरी आर एस एस (RSS) को सौंपने का मन बना लिया है, तैयार होने पर सह कार्यवाह सोनी जी को सौंप दूंगा। मैं यह आर्ट गैलरी सहर्ष सौंप रहा हूं। जिसे उन्होंने 13 सितंबर 2019 को माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार त्रिवेंद्र सिंह रावत, केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, आर एस एस सह कारवाह सुरेश सोनी जी को सौंपकर हर्ष व्यक्त किया है। इस अवसर पर विधायक गंगोत्री गोपाल रावत, कर्नल अजय कोठियाल, अजय पुरी जी, संत समाज, गंगोत्री मन्दिर समिति अध्यक्ष सुरेश सेमवाल एवं समस्त समिति सदस्यों, व्यापारियों, कर्मचारियों सहित कई यात्री, पर्वतारोही इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने।

प्रेरणादायक है स्वामीजी की आत्मकथा

स्वामी सुंदरानंद ने अपनी आत्मकथा में अपने बचपन, शिक्षा और 21 वर्ष की उम्र में एक अनजान मार्ग पर चलकर जीवन और संघर्ष से जूझते हुए, सद्गुरु तपोवन महाराज के सानिध्य तक पहुंचना, एक छोर से दूसरे छोर, दक्षिण से उत्तर, (आंध्र प्रदेश से उत्तराखंड के उत्तर में) पावन पवित्र धाम गंगोत्री, गोमुख, हिमालय के भितरी मार्ग से 8 बार बद्रीनाथ की यात्रा, 108 बार गंगोत्री से गोमुख यात्रा का वर्णन किया है। यात्रा में भोजन कम ही ले जा सकते थे कभी कभी आटे को घोल कर पिया।

वहीं 1955 में ₹25 के कैमरे से शुरू हुआ फोटोग्राफी का सफर, स्लाइड शो, पर्वतारोहण, गंगा व हिमालय के संरक्षण, स्वच्छता को दर्शको तक पहुंचाने का काम किया। जिसने देश विदेश में सुंदरानंद महाराज को एक अलग पहचान दिलाई। 1967 में लाल डांग से गंगा का एक आलोकिक विहंगम दृश्य अपने कैमरे में कैद किया था। जिसे रेलवे स्टेशन एवं ‌विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया। यहां तक की विदेशों में भी उनकी पुस्तकों में यह गंगा की‌ अद्भुत फोटो प्रकाशित ‌हुई। अब उस‌‌ स्थान पर‌ सीमा‌ सड़क‌ संगठन ने व्यू पाइंट का बोर्ड ‌लगा‌ दिया है।

स्वामी सुंदरानंद

गंगा अवतरण महर्षि “कपिल” द्वारा गंगा का विस्तार पूर्वक वर्णन, हिमालय में गोमुख से बंगाल की खाड़ी में गंगा सागर तक का गंगा का 2500किलोमीटर लंबा सफर कहीं-कहीं पर यह 5 किलोमीटर चौड़ी हो जाती है। गंगा के अवतरण में महर्षि कपिल मुनि का विशेष योगदान रहा है।

कपिल मुनि एक महान भूगोल वेत्ता थे। गंगा सागर इन की तपोस्थली मानी जाती है। कपिल मुनि को अग्नि का अवतार और ब्रह्मा का मानस पुत्र माना जाता है। उन्हें आदिसिद्ध और आदिविद्वान माना जाता है। विष्णु सहस्रनाम जप के साथ, गंगा व हिमालय के चप्पे-चप्पे का वर्णन, महत्व व नामकरण का वर्णन इस पुस्तक में मिलता है। वैसे संत अद्भुत होते हैं, इनके पास आशीर्वाद ही होता है; लेकिन सुंदरानंद जी एक अद्वितीय अद्भुत संत हैं।

यदि संत का जीवन हमें सरल लगता है, वह हमारी भूल है। हम एक पक्ष देखते हैं; जो वास्तविक संत होते हैं उनके पास भौतिक वादी संसाधन नहीं होते हैं, लेकिन उनका वचन कभी खाली नहीं जाता है। गोमुख से गंगा की गंगासागर तक की यात्रा कितनी कष्टप्रद रही होगी। कोई मार्ग तैयार न था, कहां-कहां से जाना है, और गंगा अपने गंतव्य गंगासागर तक पहुंच जाती है। ऐसे महाराज की जीवन यात्रा भी कमतर न थी, कहां थे, क्या थे, कहां पहुंचे, क्या हो गये।

महाराज को ऐसा कुछ पता नहीं था लेकिन स्वामी जी का गंगा और हिमालय के संरक्षण, स्वच्छता के प्रति जो आदर सम्मान है, सेवा भाव ना जाने कितनी ही संतों को अपने हाथों से बना कर खाना खिलाया, बर्तन धोये जो भी सेवा कर सकते थे; उन्होंने मन से की।

गुरु कृपा, गंगा माँ के प्रति सम्मान, सेवा भावना ने महाराज को क्या नहीं दिया। बड़े-बड़े राजनेता, कर्मचारी, अधिकारी आज स्वामी जी की तपस्या, ज्ञान, कर्मठता, सद् कार्यों, संघर्षों के कायल हैं। स्वामी जी के 94 बर्षों के कठिन संघर्षों, कार्यों को मूर्त रूप (पुस्तक के रूप ) में सहयोग देने के लिए डॉक्टर जोहरी लाल, डाॅ.अशोक लूथरा, डॉ अर्चना लूथरा, प्रसिद्ध साहित्यकार बद्री नाथ मिश्र, शचीकांत शर्मा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

सम्मान एवं पुरस्कार

सुंदरानंद महाराज जी को अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित एवं पुरुस्कृत किया गया –
1. आयुर्वेद संरक्षक अखिल भारतीय आयुर्वेद विशेषज्ञ सम्मेलन नई दिल्ली (29.09.2002)
2. कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान हेतु– माला मुरादाबाद (14.11.1987)
3. हिमालय संस्कृति संरक्षक सम्मान — अखिल भारतीय आयुर्वेद विशेषज्ञ सम्मेलन पुणे (06.02.2006)
4. For inspiring achievement अनुग्रह चिरायुष्य सम्मान नई दिल्ली
5. Public relation society of India Dehradun 2004
6. CDR 91 MTN BDE GP
7. Indian military academy Dehradun
8. ITBP Dehradun (15.01.2000)
9. नासिक महानगर पालिका नासिक
10. सरस्वती पुरस्कार अखिल भारतीय वैदिक सम्मेलन कैलाश मठ ट्रस्ट नासिक (18.01.2010)
11. उत्तराखंड रत्न देहरादून (20.4.2024)

आभार

सुन्दरानन्द बाबा‌ तक पहुंचने और उनके बारे मे सामग्री ‌जुटाने में श्री सुरत सिंह रावत अमर उजाला उतरकाशी, सुरेन्द्र नौटियाल संवाददाता हिन्दुस्तान, स्वामी जी की आत्म कथा हिमालय के‌ संत, डॉक्टर अशोक लूथरा एवं परिवार, प्रवीन भट्ट प्रकाशक समय साक्ष्य, फोटोग्राफर अंकित चौधरी, सहित तमाम उन लोगों का आभार व्यक्त करता हूं जिनका सहयोग मुझे प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप में स्वामी सुन्दरानन्द जी महाराज के बारे में यह लेख आप पाठकों के समुक्ख प्रस्तुत करने में मिला है।

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